तिनका तिनका डासना
नुक्कड़ नाटक
जेल भी बोलती है।
पात्र: कशिश एक अपराधी
जेल एक काल्पनिक पात्र
कशिश: (उदासी से जेल के एक कमरे में घूमते हुए)
चार दिवारी में बंद हु मैं
चार कदम आगे
चार कदम पीछे
आगे लोहे की जाली
चारों ओर न एक भी बारी
अंधेरे में बंद मेरी उदासी
जेल: (शांत वातावरण में गूंजती आवाज)
सुनो! सुनो!…….
जरा इधर सुनो!….
कशिश: (चारों ओर देखते हुए)
कौन है?
ये आवाज किसकी है?
जेल: ये मेरी आवाज है।
जेल की आवाज।
कशिश: मैं नहीं मानता।
(गुस्से में)
जेल में तो सिर्फ ताले और गेट खुलने की ही आवाज आती है।
जेल: जरा ध्यान से सुनो।
तुम्हारे दाएं तरफ “तिनका तिनका जेल रेडियो” पर गाने की गूंज।
ठीक बाएं तरफ “लाइब्रेरी”,जहां आवाज तो नही है पर कड़ियों में साहित्य लिखने का शोर जरूर है।
काशिश: क्या जेल में लाइब्रेरी भी है?
जेल: लाइब्रेरी ही नहीं रंगीन दिवारे भी है।
जो जेल के बंदियों ने रंगी है। जहां उनकी मेहनत और लग्न ने जेल में एक इन्द्रधनुष बना दिया है।
कशिश: जेल की दीवारें कैसे रंगीन हो सकती है,ये तो हमारे जैसे बंदियों के लिए बेरंग ही होती है।
जेल: साहित्य की कला से तुम अपने आप को एक नई पहचान दे सकते हो।
कशिश: पहचान से होगा भी क्या,रहना तो जेल में ही है।
जेल: इस सवाल का तो जवाब “तिनका तिनका जेल रेडियो” ने दिया है।
तुम्हारे बंदी भाईयो और बहनों जैसे अभिषेक,शेरू,सभी ने जेल रेडियो पर अपनी कविताएं पॉडकास्ट और गाने भी गाए और समाज में अपनी एक पहचान कलाकार के रूप में बनाई।
चाहो तो तुम भी अपनी साहित्य की कला को बढ़ावा दे सकते हो।
कशिश:मैं भी अपनी पहचान एक कलाकार के रूप में बनाना चाहता हूं।तिनका तिनका जेल रेडियो मेरी आवाज और विचारों को पॉडकास्ट करने में भी मदद करेगा।
कशिश: (कुछ सोचते हुए और नाटक में कविता लिखते हुए)
एक मौज आई
मेरी बेरंग कला में
इंद्रधनुष बना गई।
तिनका तिनका जोड़कर
मेरी आवाज का
गीत बना गई।
मेरी चार दिवारी को
गुनगुनाना सीखा गई।
एक मौज आई
मेरी बेरंग कला में
इंद्रधनुष बना गई।