लोग अक्सर सोचते हैं कि एक तिनके यानी एक मामूली से कण से किसी को क्या फर्क पढ़ेगा लेकिन जब वही कण एक-एक करके आपस में मिलते हैं, तो एक तस्वीर उभरकर बाहर आती है। “तिनका तिनका डासना” वही उभरी हुई तस्वीर है। तिनका तिनका तिहाड़ के बाद भारत की सबसे बड़ी जेल ” डासना ” का सफर इस किताब की लेखिका वर्तिका नंदा के द्वारा आरंभ हुआ।
तिनका तिनका डासना का उद्देश्य वहां रहने वाले लोगों को उनके दर्द से बाहर निकालकर उन्हें उनके सपनों को सौंपना है। समाज को आईना दिखाना और न्यायिक व्यवस्था से मानवीय होने की प्रार्थना करना है। तिनका तिनका डासना वर्तिका नंदा की उस श्रृंखला का नाम है। जिसने इसके अंदर रहने वाले लोगों के दिलों में जोश- ओ- उमंग उनकी आंखो में नए सपने और उनके जीवन में रोशनी फैलाई । इस किताब के हर पन्ने के जरिए एक ऐसे समाज को देखा जा सकता है जिसे न्याय की जरूरत है। जेल के अंदर सज़ा काटकर बाहर निकलने वाले बंदियों को समाज उतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता है। जिसके वह साफ रूप से हकदार हैं। इस किताब को कुछ अलग ढंग से लिखा गया है। जेल में जो दिखा उसे ही लिखा । “यहां खबर में कहानी, कहानी में ख़बर और जब दोनों को साथ में देखो तो पूरा सच बाहर निकलता है”। जिन लोगो ने जेल नहीं देखी, उनके लिए यहां तकरीबन जेल के हर अंश को बखूबी उतारा गया है। जेल का कोई भी अंश अधूरा बाकी नहीं रहा है।
इस किताब को 9 हिस्सों में विभाजित किया गया है। किताब का आरंभ जेलों पर लिखी गईं रिपोर्टों से किया गया है। वैसे तो इस किताब का मुख्य केंद्र डासना जेल है। परंतु इस किताब का पहला दरवाजा भारत की अनेक जेलों का एक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसमें कुछ कविताएं भी लिखी गई हैं जो “वर्तिका नंदा” की अन्य पुस्तकों- -रानियाँ सब जानती हैं और -थी. हूँ.. और रहूँगी…से ली गई है।
किताब के दूसरे हिस्से में उन 5 जिन्दगियों की कहानी है जो आजीवन कारावास पर हैं। जेल में आने के बाद कैसे उनका जीवन बदला, कैसे सबने अपनी नई परिभाषा रचने की कोशिश की और अपने आपको उस माहौल में देखा। इसमे इन्ही 5 जिन्दगियों की दास्तान है। तीसरे हिस्से में जेल में उम्मीद के दिए हैं जो योग, संगीत, पेंटिंग, कलम, और नई तकनीक के जरिए कैसे अपनी जिन्दगियों में रोशनी फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। हर एक दीया जिन्दगियों में बखूबी रोशनी दे रहा है। चौथे हिस्से में जेल के उन अधिकारियों की कहानी है जिन्होंने अपनी कोशिश से तिनका-तिनका जोड़कर जेल के बन्दियों की जिंदगी को अच्छा बनाया है। इनकी कोशिश बन्दियों के दिल पर छपी है। शायद इनकी इन्ही कोशिश के तिनकों के जरिए जेल में जीवन संभव है। इन्ही से जेल में जीवन है। पांचवे हिस्से में उनके बारे में है जिनके जरिए तिनके आपस मे जुड़े और तिनका तिनका डासना के प्रयोग इतने सफल हुए। इन लोगों ने मिलकर तिनकों को जोड़ा है, और बन्दियों के अन्दर कुछ कर गुजरने का साहस जगाया है। छठे हिस्से में वो कविताएं हैं जो बन्दियों ने लिखी है और कलम के जरिए अपने अन्दर छिपे दर्द को बाहर कागज पर लाने का एक खूबसूरत प्रयास किया है। सांथवे हिस्से में आपकी नज़र उन कविताओं पर पड़ेंगी जो इसमें रहने वाले बंदियों ने स्वयं लिखी हैं। यह कविताएं पूर्ण रूप से साहित्यक नहीं है परंतु इनमे दिखता हुआ दर्द ओर झलाक्ता हुआ प्यार सच्चा है। आंठवे हिस्से में उन लोगो के बारे में है जो आज भी इन जिन्दगियों के अंधेरे में डकेलने का काम कर रहे हैं। इस किताब के अंतिम और नवे हिस्से में आपको वह गीत लिखा मिलेगा जिसे खुद “वर्तिका नन्दा ” ने अपने हाथों से रचा है। जिसे जेल के बन्दियों ने ही गया है। और इसके जरिए से सुरों के संगम को बाखूभी बन्दियों के दिलो तक पहुंचाया है।
तिनका तिनका डासना में एक कैलेन्डर, कविता, गीत, दीवार, पर की गई 3D पेंटिंग के जरिए बन्दियों की जिन्दगियों में उजाला करने की और उन्हें नए सपने देखने का साहस प्रदान करने की एक अनूठी पहल की गई है। इस किताब के माध्यम से जेल के अन्दर सांस ले रहीं जिन्दगियों को करीब से जानने का मौका मिलता है।
तिनका तिनका डासना देश की दूसरी सबसे चर्चित जेल है क्योंकि किताब पर काम के दौरान इस जेल में ऐसे बंदी कैद थे जो अपने केस के दौरान चर्चा का विषय बने रहे। यहां तक कि सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री “आरुषि मर्डर” केस के आरोपी डॉ. राजेश तलवार और इनकी पत्नी नूपुर तलवार भी इसी “डासना” जेल में ही बंदी थे। वर्तिका नंदा की इस किताब में वो कविता भी प्रकाशित हुई है जो नूपुर तलवार ने अपनी बेटी आरुषि के पर लिखी थी। तिनका तिनका डासना में ऐसी बहुत सी कविताएं प्रकाशित हुई हैं जो वहां रहने वाले बंदियों ने स्वयं लिखी हैं।
तिनका तिनका डासना के अंतिम हिस्से में लेखिका ने लिखा है कि – हमने कोशिश की है कि सबके हाथ में उम्मीद का कोई चिराग आ जाए फिर किसी ने अपनाया संगीत, किसी ने थमा रंगों का ब्रश और बन गया तिनका तिनका डासना। हमने चाहा है कि न बन्दियों की रातें अंधेरी रहें और न ही उनके दिन। यही है तिनका तिनका डासना
“ दिन बदलेंगे यहाँ भी , पिघलेंगी यह सलाखें भी
ढ़ह जायंगी यह दीवारें, होंगी अपनी कुछ मीनारें
टूटे फिर भी आस ना , यह है अपना डासना,,
(यह वर्तिका नन्दा का लिखा गीत है, जिसे डासना के बन्दियों ने गया है और अब यह जेल का परिचय गान है।)
यह गीत तिनका तिनका डासना के तिनके की तस्वीर स्पष्ट रूप से उभारता है।
कुल मिलाकर यह किताब मानवाधिकार और जेल सुधार की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। तिहाड़ जेल पर तो अकसर बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन डासना जैसी जेल पर ऐसा विस्तृत वृतांत देखने को नहीं मिलता भारत भर की जेलों का आकलन प्रस्तुत करती यह किताब युवाओं को जेल के प्रति संवेदनशील बनाने में कारगर होगी लेकिन इसका पूरा उपयोग तभी होगा अगर जेल और पुलिस अधिकारी भी इसे पढ़ें।