अल्फ़ाज़ों के कैदी की कोरे पन्नों पर रिहाई है दर्द छुपा था जो बरसों से वो स्याही आज उभर आई है। -अज्ञात जेल का रेडियो,इसका
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Shyam Bai’s Musical Rendition from Bilaspur Jail
“ज़ुबां बंद है पलकें भीगीं सच मुट्ठी में पढ़ा आसमान ने मैं अपने पंख खुद बनूंगी हां, मैं थी. हूं..और हमेशा रहूंगी..” (This poem is