कोरोना वायरस, जेल और एक तिनका संवाद

भारत की तकरीबन सभी जेलों से रिहा होने की पात्रता पूरी कर रहे बंदियों की सशर्त रिहाई का काम तेजी से शुरू हो गया है - फोटो : Pixabay

कोरोना वायरस के प्रभाव के बीच जेल की कई बड़ी खबरें फिर नजरअंदाज कर दी गईं। पहली खबर यह कि ईरान की सरकार ने अपनी जेलों से कम जोखिम वाले 85,000 बंदियों को अस्थायी तौर पर रिहा कर दिया है ताकि जेलों में इस संक्रमण के फैलने के खतरे से बचा जा सके। दूसरी खबर भारत से है। सुप्रीम कोर्ट ने भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जेल महानिदेशकों से जेलों में कोरोना को फैलने से रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा। 

इसके तुरंत बाद भारत की तकरीबन सभी जेलों से रिहा होने की पात्रता पूरी कर रहे बंदियों की सशर्त रिहाई का काम तेजी से शुरू हो गया। इनमें विचाराधीन और सजायाफ्ता, दोनों ही बंदी शामिल हैं, लेकिन संगीन अपराधों वाले अपराधियों की रिहाई नहीं होगी। यह कदम उचित और तर्कसंगत है। इस कदम को उठाए जाने के बीछे दो विशेष कारण हैं- एक तो भीड़ से भरी जेलें और दूसरे किसी भी संक्रमण के होने पर जेलों पर काबू पा सकने की मुश्किल। 

चूंकि जेलों में मुलाकाती, जेल स्टाफ और वकील नियमित तौर पर आते हैं, ऐसे में जेलों में संक्रमण बढ़ने की आशंका की बेवजह नहीं है। इस दौरान देश की सभी जेलों में कोरोना से संक्रमित कैदियों को अलग रखने की व्यवस्था की गई जबकि तिहाड़ में सभी 17,500 बंदियों का परीक्षण कर लिया गया। देश भर में बंदियों की मुलाकातों को फिलहाल बंद कर दिया गया है। नए बंदियों को तीन दिन के लिए अलग वार्ड में रखने का प्रावधान भी कर दिया गया।  

देश की 1,339 जेलों में करीब 4,66,084 कैदी बंद हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, देश की जेलों में औसतन क्षमता से 117.6 फीसदी ज्यादा बंदी हैं। उत्तर प्रदेश और सिक्किम जैसे राज्यों में यह दर क्रमश: 176.5 फीसदी और 157.3 फीसदी है। यानी हमारी जेलें अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा भीड़ से लबालब हैं। कोरोना के संकट के बीच सुप्रीम कोर्ट को एक बार फिर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस समस्या की याद दिलानी पड़ी है। 

बहरहाल, इस दौर में बाहर की दुनिया वायरस से जंग कर रही है, वहीं अंदर की दुनिया की अपनी चिंताएं हैं जो संवाद से परे हैं। असल में जेल में बंद लोगों के लिए बाहरी दुनिया से संपर्क करने में मुलाकात सबसे प्रमुख जरिया है और कोरोना के चलते इन्हें बंद कर दिया गया है। इसके बंद होने का सीधा मतलब है कि बाहरी दुनिया से सीधे संपर्क का बड़ा पुल अब बंद है। लेकिन कई जेलों ने इसकी जगह पर टेलीफोन की व्यवस्था को दुरुस्त कर बंदियों को आशवस्त किया है। 

मौजूदा हालात में ऐसा करना बेहद जरूरी था क्योंकि जेल में संक्रमण का आना बेहद खतरनाक और बेकाबू स्थितियां ला सकता है। इसके जायज होने के बावजूद जेल प्रशासन को इस दौर में इस मुद्दे पर भी विचार करना चाहिए कि भविष्य के लिए मुलाकात के और विकल्पों पर गौर किया जाए और बंदियों के साथ सीधे संवाद कायम किया जाए। जेलों में बढ़ी बंदिशों के चलते इसी पखवाड़े दमदम जेल, कोलकाता में बंदियों ने विरोध में जेल के एक हिस्से को जला डाला। हिंसा हुई। 

वैसे हर संकट के समय जेल भूमिका भी निभाती है। अभी कई जेलें मास्क बना रही हैं। तिहाड़ के बंदियों ने तो आगे बढ़कर दिल्ली पुलिस के लिए ढेर मास्क बना डाले हैं। मध्य प्रदेश की जेलों ने एक महीने में ही दो लाख मास्क बना कर तैयार कर दिए हैं और एक खेप को नासिक भी भेजा। मध्य प्रदेश के जेल महानिदेशक संजय चौधरी कहते हैं कि मध्य प्रदेश की जेलों ने इस आपदा के आते ही सबसे पहले अपने बंदियों और स्टाफ के लिए सैनिटाइजर बनाए। फिर इन्हें राज्य भर में महज साढ़े सात रूपए में बेचा गया। 

उत्तर प्रदेश की जेलों के महानिदेशक आनंद कुमार बताते हैं कि राज्य ने साढ़े ग्यारह हजार बंदियों को रिहाई देने के साथ ही अब तक साढ़े तीन लाख मास्क तैयार कर लिए हैं। राज्य की 71 में से 67 जेलें इस समय मास्क तैयार कर रही हैं। उन्होंने इन बंदियों को बंदी वीर का नया नाम भी दे डाला है। ऐसा ही सराहनीय काम उत्तर प्रदेश, राजस्थान और केरल समेत कई राज्यों में हुआ है। ऐसे में जेलों को सिर्फ अपराधियों का जमावड़ा मानने की बजाय उन्हें राष्ट्र-निर्माण का सहयोगी भी माना जाना चाहिए। 

कई जेलें लगातार बंदियों की सेहत को लेकर सचेत रही हैं। देशभर की जेलों में योग और स्वच्छता अभियान कार्यक्रम इसका प्रमाण हैं। प्रवचन और संदेश के अलावा बंदियों को उनके अपने विकास से जोड़े रखना जेल सुधार की एक बड़ी शर्त है। बांदा के जिला मेजिस्ट्रेट रहे हीरा लाल (आईएएस) कहते हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल में जिला जेल, बांदा में तुलसी और नीम के पत्तों के सेवन की परंपरा शुरु कर दी थी ताकि बंदी स्वस्थ रहें। 

कुछ दिनों पहले तिनका तिनका मुहिम के तहत आगरा जेल रेडियो में जिला जेल, आगरा के सुपरिंटेडेंट शशिकांत मिश्रा और मैंने बंदियों जब बंदियों के साथ कोरोना से बचाव की घोषणाएं कीं, तब बंदियों के चेहरों पर चिंताएं थी। उनके पास अपनी बात पहुंचाने और सुनने का कोई और जरिया नहीं। यह समय जेल अधिकारियों के लिए भी मुश्किल का है लेकिन उनकी चिंताओं की गिनती भी कहीं नहीं होती। ऐसे में यह समय बंदियों और जेल स्टाफ के बारे में भी सोचने का है।  

(डॉ. वर्तिका नन्दा जेल सुधारक हैं। वे देश की 1382 जेलों की अमानवीय स्थिति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई का हिस्सा बनीं। जेलों पर एक अनूठी श्रृंखला- तिनका तिनका- की संस्थापक। दो बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल। तिनका तिनका तिहाड़ और तिनका तिनका डासना- जेलों पर उनकी चर्चित किताबें। 2019 में आगरा की जिला जेल में रेडियो की शुरुआत की।)

4 thoughts on “कोरोना वायरस, जेल और एक तिनका संवाद

  1. It is a good news that soon after the news of corona was spread, many prisons of our country took the required measures to prevent its spreading between the inmates and as further measures the procedures required for the release of the prisoners are being completed quickly. While we praise the police and medical staff for their hard work, it is much needed that we acknowledge the work done by prison inmates also. It is a good start by Vartika Mam to talk about this in her article. Hats off to Vartika Mam for this article and for her work towards prison reforms.

  2. Prevention is always better than cure! Be it for anybody! The government is thinking about people, official, doctors and personals! But are they thinking about inmates! I guess, even inmates are not safe from this deadly virus! They do need protection, but what the government is doing is still a biggest question mark on the authorities! I am very pleased that Vartika Ma’am is doing something for them, atleast her Tinka Tinka movement is doing a lot for the in mates. This unique kind of movement is what India needed!
    Atleast in mates must be provided by essential needs! Thanku Vartika Ma’am for raising the issue and doing reforms in the life of inmates!
    #honesty #tinkatinka #Vartikananda #prisoners #human_rights #humanity #change

  3. Tinka Tinka has been constantly working towards prison reforms and in since last few years they have really managed to bring a lot of stories to the common people. The reforms done by Tinka Tinka is something very less people know about and even very less people have attempted it. The stories about prison inmates from Tinka Tinka book series Tinka Tinka Tihar, Tinka Tinka Dasna and Tinka Tinka Madhya Pradesh has its own feel. #tinkatinka #vartikananda #jail

  4. Tinka Tinka is an umbrella embark on
    to connect prisons. Tinka Tinka became a bridge between the society.
    Dr. Vartika Nanda over the years, have managed to liberate the minds of the inmates and tried to find their inner self through various art, poems, literature etc. Their work, especially the various books and YouTube videos are a must to check out for all the people, to know the different unheard perspectives.
    She brings a ray of light full of hopes in the lives of inmates. This initiative address things beyonds all the odd.
    #tinkatinkamovement #jailmovement #vartikananda #prisonreforms

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